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नाक के नीचे मुन्ना भाई बांट रहे मौत, सिर्फ सस्ती लोकप्रियता बटोरने तक सीमित कार्यवाही..!


मौत बांट रहे झोलाछाप डॉक्टरों पर आखिर क्यों मेहरबान सीएमएचओ


इंट्रो : वृद्धा आश्रम में बुजुर्गों के साथ समय बिताना और उनका सम्मान करना बेशक बहुत ही नेक कार्य है जिसके लिए कलेक्टर श्री दाहिमा की प्रशंशा की जानी गलत नही किंतु जिला प्रशासन के अधीनस्थ संचालित तमाम विभागों की लचर होती व्यवस्था को ठीक करना भी सायद साहब का काम है, या फिर साहब को यह मालूम ही नही है कि कहीं नाक के नीचे कोई मुन्ना भाई एमबीबीएस बताकर गरीबों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहा है तो कहीं भ्रष्टाचारी बाबू डिजिटल होकर ऑनलाइन रिश्वत खा रहा है और तो और पेंशन जैसे हक के लिए भी गरीब भटक रहे लेकिन  जिम्मेदार है कि उन्हें साहब की चाटुकारिता से फुर्सत ही नहीं...।

शहडोल(कोबरा) :यूँ तो  दर्जनों ऐसे मामले हैं जो की जिला प्रशासन की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं किंतु आज हम आपको अवगत कराने जा रहे हैं एक ऐसे मामले से जो कि कई वर्षों से जिला प्रशासन के अधिकारियों एवं स्वास्थ्य महकमे के लिए चुनौती साबित हो रहा है। दिया तले अंधेरा की कहावत एक बार फिर चरितार्थ तब हुई जब वर्षों से जिला मुख्यालय से महज 500 मीटर दूर संचालित झोलाछाप डॉक्टर बंगाली के अवैध अस्पताल पर अंकुश लगाने में जिला स्वास्थ्य अमला नाकाम साबित हुआ ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इस बात की जानकारी जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी को नहीं है कई बार विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से उक्त मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में लाई गई है किंतु विभाग के जिम्मेदार डॉक्टर साहब का जवाब रटा- रटाया है इतना ही नहीं एक ओर जहां जिले में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा की स्थिति इतनी बुरी है वहीं दूसरी ओर व्यवस्था सही करने के स्थान पर दौरे के नाम पर खानापूर्ति करते हुए पुरस्कार बांटे जा रहे हैं।
 जाने कौन है डॉक्टर बंगाली ....
मुख्यालय से महज कुछ ही दूरी पर सोहागपुर के गढ़ी मार्ग में वर्षों से एक अस्पताल संचालित है जिसे क्षेत्र में डॉक्टर बंगाली दवाखाना के नाम से जाना जाता है। जागरूकता की वजह से भले ही नगरवासी इस दवाखाना से दूरी बनाए हुए हैं किंतु दिन भर में आधा सैकड़ा से ज्यादा गरीब ग्राम वासियों की जिंदगी से खिलवाड़ का मौका डॉक्टर साहब को मिल ही जाता है सोहागपुर क्षेत्र से लगे तमाम ग्रामों से मरीज इलाज और जिंदगी की उम्मीद में डॉक्टर साहब के पास जाते हैं और डॉक्टर साहब अपनी जेब गर्म कर मरीज को या तो जिला अस्पताल भेज देते हैं या फिर मरीज के जीवन का सफर उसी अस्पताल में समाप्त हो जाता है। और भोले-भाले आदिवासी ग्रामीण जानकारी के अभाव में गलत इलाज से हुई मौत को बीमारी से हुई मौत समझ कर अपने गांव shav को लेकर लौट जाते हैं और मामला पुलिस तक भी नहीं पहुंच पाता। इस अस्पताल के संचालक डॉक्टर बंगाली मीडिया को यह स्पष्ट बताते नजर आते हैं कि उन्हें जिला प्रशासन का रत्ती भर भी भय नहीं है। डॉक्टर साहब के दवा खाने में भले ही जगह कम हो लेकिन डॉक्टर साहब ने अपनी बैठक के दोनों और बेड लगा रखे हैं ताकि मरीज को भर्ती किया जा सके इतना ही नहीं मरीज बढ़ने की दशा में अंदर के कमरे भी खोल दिये जाते है ऐसे ही दिन भर मुन्ना भाई एमबीबीएस का मौत बांटने का खेल चलता रहता है।
राकेश का मैनेजमेंट और राजेश की मेहरबानीयां....
बीते 2 माह से हमारी टीम इस बात की तफ्तीश करने में जुटी हुई है कि डॉक्टर बंगाली समेत अन्य झोलाछाप डॉक्टरों के दवाखाने में कार्यवाही क्यों नहीं होती या फिर कार्यवाही के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर क्यों मौत का खेल अनवरत चलने दिया जाता है। विभाग में कार्यरत सक्रिय  सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर राजेश पांडे की मेहरबानी होगी वजह विभाग के एक अदने से कर्मचारी राकेश का मैनेजमेंट है जोकि जिले भर में कार्यरत अपने गुर्गों के माध्यम से प्रत्येक झोलाछाप डॉक्टर से प्रतिमाह 25 हजार रुपयों की वसूली करवाता है जिसका कुछ हिस्सा बीएमओ को दिया जाता है और बांकी साहब का रिजर्व है इतना ही नही यह कीमत पहले बीस हजार रुपये प्रतिमाह हुआ करती थी और अब यह कीमत नए बड़े साहब कोई स्ट्रीक्त बताकर बढ़ाई गई है ।

मीडिया के लिए रटा- रटाया जवाब..
जून माह में कोबरा न्यूज़ की टीम द्वारा डॉक्टर बंगाली की अवैध क्लीनिक की जानकारी तीन से चार बार दूरभाष के माध्यम से जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी को दी गई किंतु उनका जवाब रटा.रटाया ही रहा की कार्यवाही की जाएगी , निर्देश दिए गए हैं, दल की कमी है और एफआईआर लांच करने के लिए एसपी साहब को पत्र लिखा गया था । इतना ही नहीं कोबरा न्यूज़ टीम के अलावा यह समाचार विजय मत समाचार पत्र द्वारा प्रमुखता से प्रसारित किया गया था लेकिन कार्यवाही फिर भी शून्य रही । हालांकि इन बातों से साहब का डॉक्टर बंगाली पर मेहरबान होना सिद्ध नहीं होता किंतु विशेष चौकानेवाले तथ्य यह है कि भोपाल से प्रकाशित प्रदेश वाच अखबार के स्थानीय संपादक विनीत त्रिपाठी द्वारा मुहिम चलाकर कई बार इस मामले को अपने अखबार में प्रमुखता से स्थान दिया गया लेकिन साहब का जवाब वहां भी रटारटाया   ही रहा। इतना ही नहीं बीते कई दिनों से मुख्यालय के आसपास सक्रिय अन्य झोलाछाप डॉक्टरों की कहानी अन्य समाचार पत्रों में फोटो प्रमाण के साथ प्रस्तुत की गई है  किन्तु उन पर भी कार्यवाही का क्या बुक अब तक नहीं चला।
               प्रकाशित समाचारों की प्रतियाँ







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