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सिस्टम नया है,साहब का साहब जाने मुझे मेरा चाहिए....!

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शहडोल ( कोबरा - टेढी बात): अब बोलूंगा तो बोलोगे कि बोलता है लेकिन थोड़ा बोलने और पोल खोलने में कोई हर्ज भी नहीं अब मिश्रा जी को चेकिंग से  हटाना था तो कोई बहाना तो बनाना था,खैर अब तो चांदी ही चांदी है पर कमाई अभी भी आधी है 
अब जुगाड़ एक जमाने वाले दो
विभाग एक और कमाने वाले दो       
 भाई अंतरकलह तो स्वभाविक है लेकिन अंत भला तो सब भला खर्चा साहब को दिया तो दाल वही गला, "पर माफिया बेचारा उसको तो रेत प्यारा",तब गूंजी आवाज साहब का साहब जानें हमको हमारा चाहिए,सिस्टम में रहना है तो चले आइये ।तब महीना हुआ दो गुना ये तो बहरो ने  भी सुना,पर ऐसी पड़ी मार की पिस गए बाइक सवार,अब झंझट का हुआ अंत और प्रभारी का ड्राइवर बना महंत, सिस्टम वाली सारी नौ दो ग्यारा है, दुपहिया में ही पौ बारा है। अंत मे वही तकियाकलाम "अच्छा बाबा कहासुनी माफी" "अभी के लिए इतना काफी" "रात बाकी -बात बाकी"।






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