शहडोल।ब्यौहारी में एक सहायक उप निरीक्षक की अवैध परिवहन कर रहे ट्रैक्टर की चपेट में आने से मौके पर मौत होती है आरोप प्रत्यारोप के सिलसिले जारी है लेकिन सवाल यह उठता है की क्या 19 साल का लड़का ट्रेक्टर चालक जो आदिवासी है । क्या उसके द्वारा एक पुलिस कर्मी की हत्या को अंजाम दिया जा सकता है या यह एक महज़ दुर्घटना है । ऐसी क्या वजह बनी कि की एक समझदार पुलिस ट्रेक्टर को रोकने के लिए ट्रेक्टर के सामने खड़ा होना पड़ा । जबकि पुलिस प्रशासन सूझ बुझ के माहिर होते है गाड़ी कैसे चलाना ट्रैफिक रूल्स को कैसे पालन करना इनके द्वारा ही सिखाया जाता है । क्या 19 साल का आदिवासी जब पुलिस को सामने देखा होगा तो घबरा के चलती गाड़ी से भाग गया और सामने खड़ा पुलिस कर्मी बिना ड्राइवर के ट्रैक्टर के चपेट में आकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जान को जोखिम में डालते हुए एक बालू के ट्रेक्टर को पकड़ना समझ से परे है .. ऐसा साहस तब तारीफ़ के लायक़ हो जब सामने एक जघन्य आतंकवादी, क्रिमिनल या देशद्रोह हो । संदेशास्पद प्रतीत लगता है ये मामला दुर्घटना और हत्या के बीच में कहीं है ?? मामले में बड़ा सवाल यह है कि एक ट्रैक्टर रेट जिस पर फांसी या काला पानी की सजा नहीं होती उसके लिए क्या कोई ट्रैक्टर चालक किसी पुलिसकर्मी को मौत के घाट उतार सकता है, जबकि मामला सिर्फ डेढ़ से 2 हजार कीमत की रेत के चोरी का था।
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