साहित्यकार सबसे पहले अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ कर लें तभी उनका साहित्य गंभीर होगा। ये बातें भोजपुरी और हिंदी के लेखक कृष्ण कुमार ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा आयोजित एंव श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम आखर में बातचीत के दौरान कहीं।उनसे बातचीत भोजपुरी के युवा लेखक जीतेन्द्र वर्मा कर रहे थे। जीतेन्द्र वर्मा ने बताया कि कृष्ण कुमार वैचारिक रूप से प्रखर हैं। स्त्री विमर्श, भ्रूण हत्या, पर्यावरण, दहेज और ग्रामीण जीवन की स्थिति इनके साहित्य में अभिव्यक्त होती है। भाषा लगाव पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि भोजपुरी भाषा से प्रेम गांव में रहने के कारण हुआ। मैंने सर्वप्रथम चर्चित कथाकार मिथिलेश्वर की हिंदी रचना का भोजपुरी में अनुवाद किया। मैं कथा में शिल्प से ज्यादा उसके कथानांक को तहरीज देता हूं। लिंगभेद पर उन्होंने कहा कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होता है। इस अंतर को शिक्षा से ही खत्म किया जा सकता है। भ्रूणहत्या का सबसे बड़ा कारण दहेज है। लेखक कृष्ण कुमार ने बताया कि मैं लिखने से ज्यादा पढ़ता हूं। मैंने कई हिंदी लेखकों को पढ़ा है। रचनाकर्म में अपने आदर्श पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि लेखन में मेरा आदर्श मेरी मां और भगवान हैं।


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