Ticker

6/recent/ticker-posts

भ्रष्टाचार की कहानी......पानी की तरह बहाए करोड़ों पर नहीं बहा पानी


हे राम अन्नदाता भूखा ,व्यवस्था के बाद भी झेल रहे सूखा... 


जिम्मेदारो ने लिखी भ्रष्टाचार की  इबारत,करोड़ो की खेली होली 






इंट्रो : बदहाल किसानों को राहत दिलाने के उद्देश्य से जल संसाधन विभाग द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर सिंचाई की व्यवस्था कराई जाती है किंतु चंद चुनिंदा भ्रष्टाचारी अधिकारियों के लालच की वजह से किसानों को इसका लाभ नहीं मिल  पाता है। ऐसा ही एक मामला जयसिंहनगर के झलमला में सामने आया है। भ्रष्टाचार और किसानों की स्तिथि देखकर कवि सुदीप भोला की पंक्तिया चरितार्थ होती है कि- 
एक अरब पच्चीस करोड़ की भूख जो रोज मिटाता है
कह पता नही वो किसी से जब भूखा सो जाता है
फिर सीने पर गोली खाता सरकारी सम्मान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की
किसी को काले धन की चिंता किसी को भ्रष्टाचार की
मगर लड़ाई कौन लड़ेगा फसलों के हक़दार की
सरे आम बाजार में इज्जत लुट जाती खलिहान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की


शहडोल (कोबरा)। प्रशासन चाहे किसानों के उद्धार के लिए लाख प्रयास करे किंतु भ्रष्टाचार की जड़ें इस कदर फैली हुई हैं कि शासन द्वारा करोड़ों खर्च करने के बाद भी  किसानों को सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं हें। मामला जयसिंहनगर के झलमला टैंक का है। जहां ठेकेदार व जिम्मेदार ने मिलकर नहर के नाम पर भ्रष्टाचार की इबारत लिख दिया है और करोड़ों की लागत से बनी नहर सिर्फ शोपीस बनकर रह गई है।
हाय यह कहानी नही है पानी 
टेटका मोड़ के समीप किसानों को लाभ दिलवाने के उद्देश्य से वर्ष 2014-15 में जलसंसाधन विभाग द्वारा करोड़ों की लागत से नहर बनवाई गई थी। जो कि निर्माण के बाद से ही सूखी पड़ी हुई है, लगभग 7-8 से किमी. लंबी नहर में जल का ठहराव सिर्फ शुरुआत के एक किमी तक ही देखने को मिलता है। बाकी पूरी नहर  सूखी पड़ी हुई है। तकनीकी भाषा में कहा जाए तो निर्माण कार्य गलत हुआ था, नहर की संरचना मानक के अनुरूप नहीं है। फिर भी ठेकेदार और जिम्मेदार ने मिलकर साठगाठ कर बिल निकलवाकर  मामला ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया।
इंजीनियर को नही दिखी कमियां
उल्लेखित नहर की तकनीकी खामियां जानने के लिए जब हमारी टीम जानकार के साथ मौका मुआयना करने नहर पर पहुंची तो जानकार ने भ्रष्टाचार की ढोल की पोल परत दर परत उतारना शुरू कर दिया। तकनीकी जानकार द्वारा बताया गया कि नहर की संरचना  जल बहाव के अनुरूप नहीं है, अर्थात जिस दिशा में ढाल दी जानी चाहिए थी वहां ठेकेदार द्वारा रुपए बचाने के उद्देश्य से महज कोरम पूर्ति ही कर दिया जबकि नहर की डिजाइन का ध्यान नहीं रखा गया है। इतना ही नहीं गुणवत्ताविहीन सामग्री इस्तेमाल करने की वजह से तकरीबन 40 प्रतिशत नहर क्षतिग्रस्त हो चुकी है।
नीद में था विभाग...
करोड़ों की लागत से नहर बनाइ गई और लगभग 80 प्रतिशत नहर सूखी ही पड़ी रह गई। इसके बाद भी जिम्मेदारों या यूं कहें कि विभाग की नीद नहीं टूटी और अधिकारियों ने मौका मुआयना करना उचित नहीं समझा या फिर जानबूझ कर उदासीनता बरती गई। वहीं सूत्रों की माने तो विभाग के इंजीनियर एमएल मिश्रा को इन तकनीकी खामियों की जानकारी शुरुआत से ही थी, किंतु परसेंटेज  के आगे नतमस्तक तमाम जिम्मेदारों आला अधिकारियों के साथ मिलकर श्री मिश्रा ने ठेकेदार का बिल भुगतान करा कर अपना व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध किया।
हमारी व्यथा की नही सुनवाई
जबसे नहर बनी है तब से ही सूखी पड़ी है, ठेकेदार व विभाग के  साहबों को बताया गया था किंतु उन्होने बारिश में पानी आएगा कहकर चले गए।
झुल्लू सिंह, स्थानीय किसान

सिंचाई की व्यवस्था नही  होने की वजह से हमारा परिवार दाने दाने को मोहताज है, हमारी कृषियोग्य भूमि भी परती पड़ी हुई है। उम्मीद थी कि नहर बनने से खुशहाली आएगी।
रामदीन सिंह, स्थानीय किसान

समय समय पर फोटो खींचने बड़ी गाड़ी में साहब आते रहते हैं हमने बताया था कि पानी नहर में कुछ दूर तक ही पहुंचा है साहब ने  कहा था कि पानी आएगा। लेकिन पानी बिना हमारी खेती बर्बाद है।
मीरू केवट, स्थानीय कृषक

जबसे नहर बनी है तब से ही सूखी पड़ी है, ठेकेदार व विभाग के  साहबों को बताया गया था किंतु उन्होने बारिश में पानी आएगा कहकर चले गए।
झुल्लू सिंह, स्थानीय किसान

सिंचाई की व्यवस्था नही  होने की वजह से हमारा परिवार दाने दाने को मोहताज है, हमारी कृषियोग्य भूमि भी परती पड़ी हुई है। उम्मीद थी कि नहर बनने से खुशहाली आएगी।
रामदीन सिंह, स्थानीय किसान


इनका कहना है 
जानकारी आपके माध्यम से संज्ञान में आई है, नहर का निरीक्षण करवा कर कार्रवाई की जाएगी।
बीपी मिश्रा
कार्यपालन यंत्री, जलसंसाधन विभाग



Post a Comment

0 Comments