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अमलाई ओसीएम मौत मामले में 48 दिन बाद दर्ज एफआईआर, छोटो पर गाज..बड़े अधिकारियों का क्या??




  80 मीटर पानी के भंडार में कटौती की गई! डीजीएमएस-जीएम की क्रांति ने अनिल कुशवाहा को दी डेथ ओपन फेस्टिवल।

 मजदूर का खून सस्ता, कारखाने का मुनाफ़ा महंगा? सीएससीएल ने 48 दिन तक की लीपापोती क्यों!



 बिलासपुर से सोहागपुर तक फैली भ्रष्टाचार की जड़ें, कोल माइंस रेगुलेशन की धज्जियाँ उड़ती रहीं, सीएमडी मौन क्यों?



इंट्रो: देश की सबसे बड़ी कोयला कंपनी एसईसीएल के अमलाई ओसीएम खदान में मजदूर की मौत सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि उच्च प्रबंधन की खुली आपराधिक लापरवाही का नतीजा है। यह घटना साबित करती है कि क्षेत्रीय महाप्रबंधकों (जीएम) से लेकर बिलासपुर स्थित शीर्ष अधिकारियों तक, सभी ने सुरक्षा मानकों को ताक पर रखा। सबसे निंदनीय यह है कि कोल माइंस रेगुलेशन की धज्जियाँ उड़ते देखते हुए भी डीजीएमएस (खान सुरक्षा महानिदेशालय) के जांच अधिकारी आंखें मूंदे रहे। यही वह सरकारी उपेक्षा है जिसने अनिल कुशवाहा को मौत के मुंह में धकेल दिया।


शहडोल / गजेंद्र सिंग परिहार


शहडोल : एसईसीएल और आरकेटीसी के घटिया और अपराधी प्रबंधन की करतूत एक बार फिर सामने आई है। अमलाई ओसीएम खदान में मजदूर अनिल कुशवाहा की मौत के मामले में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में पूरे 48 दिन लग गए। 11 अक्टूबर 2025 की घटना की प्राथमिकी 28 नवंबर 2025 को दर्ज हुई—यह देरी बताती है कि प्रशासन किसका गुलाम है और किसके इशारे पर न्याय को ठंडे बस्ते में डाला गया!

बंद खदान बनी मौत का जाल!

बंद खदान! यानी मौत का ग़ाफ़िल निमंत्रण! परिजनों ने आरोप लगायाकी यह खदान 15 साल से बंद थी, फिर भी इसमें एक्सटेंसिव ड्रिलिंग और पिलरिंग का काम करवाया गया। प्रबंधन की आपराधिक लापरवाही यह है कि वहाँ कोई चेतावनी बोर्ड नहीं था, न सुरक्षा अधिकारी और न ही बचाव दस्ता। मजदूर अनिल कुशवाहा को 80 मीटर गहरे, पानी से भरे गड्ढे के पास डीजल पंप चलाने के लिए भेजा गया, जहां हादसे में उनकी जान चली गई।

बड़े नाम गायब, छोटे मोहरे आरोपी!

परिजनों की शिकायत और मजदूरों के बयानों में आरकेटीसी के स्थानीय इंचार्ज अजय यादव और परियोजना प्रबंधक भीमसेन धींग की भूमिका सबसे संदिग्ध थी, बावजूद इसके इन दोनों के नाम एफआईआर से गायब हैं! एफ़आईआर में छह छोटे-बड़े अधिकारियों को आरोपी बनाकर प्रबंधन ने अपना दामन साफ़ करने की घटिया कोशिश की है। यह घटना स्पष्ट रूप से कॉर्पोरेट सांठगांठ की ओर इशारा करती है।


जीएम, डीजीएमएस और सीएमडी जिम्मेदार क्यों नहीं?

सबसे बड़ा और तीखा सवाल यह है कि आखिर इतने लंबे समय से नियम विरुद्ध तरीके से खदान में पानी जमा था, सुरक्षा मानकों की खुलेआम अवहेलना की जा रही थी और कोल माइंस रेगुलेशन 2017 का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया जा रहा था। इस गंभीर उल्लंघन को लेकर सोहागपुर क्षेत्र के वर्तमान महाप्रबंधक (जीएम) और पूर्व के महाप्रबंधकों ने संज्ञान क्यों नहीं लिया? क्या अमलाई ओसीएम खदान के मैनेजर ने इस स्तर की गंभीर जानकारी एसईसीएल/सीसीएल प्रबंधन, बिलासपुर को दी थी, या इन सभी ने मिलकर केवल खानापूर्ति की? क्या इसके लिए डीजीएमएस (खान सुरक्षा महानिदेशालय) के स्थानीय जांच अधिकारी ज़िम्मेदार नहीं हैं? क्या एरिया सेफ्टी इंचार्ज की कोई जवाबदेही नहीं है? यदि समय रहते इन सभी उच्चाधिकारियों ने सही कदम उठाए होते और नियम का पालन सुनिश्चित किया होता, तो आज मजदूर अनिल कुशवाहा ज़िंदा होता! इन सभी उच्च अधिकारियों पर भी आपराधिक लापरवाही के लिए तुरंत कार्रवाई क्यों न की जाए?

मृतक युवा : अनिल कुशवाहा


आगे पढ़ें : मंत्रालय तक गूंजेगा मामला, कोल माइंस रेगुलेशन एक्ट का क्यों नहीं हुआ पालन??


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