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'शहीद' दर्जे पर दोहरा मापदंड! सतना के जनप्रतिनिधि के दखल ने शहीद महेंद्र बागरी को दिलाई थी सहायता और दर्जा, शहडोल में मंत्री-सांसद ने शोक संवेदना तक नहीं की व्यक्त

 




  कर्तव्य की वेदी पर बलिदान: आरक्षक महेश पाठक को सम्मान कब? सहायता तो दूर, प्रभारी मंत्री और सांसद ने औपचारिक शोक संवेदना तक नहीं जताई!


शहादत पर शर्मनाक चुप्पी! महेश पाठक को मिले 'शहीद' का दर्जा, क्या बिना जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप यह बलिदान प्रशासनिक फाइल में दब जाएगा?


शहडोल। शहडोल के कोतवाली थाना अंतर्गत कर्तव्यनिष्ठ आरक्षक महेश पाठक का शनिवार को नए बस स्टैंड पर ‘दादू बस’ की चपेट में आने से असमय निधन हो गया। बताया जाता है की उस वक्त महेश अपनी कर्तव्य पराणिता दिखाते हुए बस की चपेट में लोग ना आ जाए इसलिए उन्हें वहां से हटा रहे थे और उन्हें बचाते हुए वे कल की गत पर समा गए, महेश पाठक ड्यूटी पर तैनात थे, जब यह दर्दनाक हादसा हुआ। उनके बेदाग चरित्र, ईमानदारी और सरल स्वभाव के चलते पूरे जिले में शोक की लहर है। स्थानीय नेताओं, पत्रकारों और आम जनता ने एक स्वर में आरक्षक पाठक को शहीद घोषित करने की मांग उठाई जा रही है ऐसे में बड़े स्तर पर मंत्री, सांसद और विधायकों की चुप्पी कई सवालों को जन्म दे रही है हालांकि औपचारिक सोशलमीडिया में शोक सन्देश प्रेषित किए गए लेकिन जनप्रतिनिधियों की भूमिका महज इससे कई अधिक होती है शहीद के दर्जा के लिए पत्राचार, आर्थिक सहायता के लिए पत्राचार आदि.. सब मुद्दों पर चुप्पी बड़ा सवाल है। संवेदनशील सवाल यह है कि जब उनके बलिदान की प्रकृति जनता की रक्षा से जुड़ी है, तो प्रदेश स्तर पर संवेदनहीन चुप्पी क्यों पसरी है? न तो शहडोल के प्रभारी मंत्री ने कोई आधिकारिक शोक संदेश जारी किया, न ही संभागीय मंत्री ने कोई बयान दिया। यह चुप्पी इस सवाल को जन्म देती है कि क्या कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मी जिसने ड्यूटी पर रहते हुए अपनी जान गंवाई है, उसे केवल ‘दुर्घटना में मृत’ माना जाएगा?


गौरवशाली शहादत और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी


आरक्षक महेश पाठक का मामला सामान्य सड़क दुर्घटना से कहीं अधिक है। वे कानून-व्यवस्था और यातायात सुचारू रखने के अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। पुलिस विभाग में ‘शहीद’ का दर्जा आमतौर पर सीधी मुठभेड़ के लिए आरक्षित होता है। लेकिन महेश पाठक का कृत्य इस दायरे से ऊपर है, जो ‘जनता की रक्षा’ के सर्वाेच्च मापदंड पर खड़ा होता है। यह बलिदान उन्हें शहीद का दर्जा दिए जाने का ठोस वैचारिक आधार प्रदान करता है। इस संदर्भ में, हाल ही में ब्यौहारी में रेत माफिया के ट्रैक्टर से कुचले गए सहायक उप निरीक्षक का मामला एक सशक्त उदाहरण और नज़ीर है। मुख्यमंत्री ने उनके परिवार को तत्काल ₹1 करोड़ की सहायता राशि देने की घोषणा की थी, और उन्हें व्यापक रूप से ‘शहीद’ के तौर पर संदर्भित किया गया। सांसद गणेश सिंह ने भी उन्हें शहीद का दर्जा दिए जाने का अनुरोध किया था। जब एएसआई बागरी के बलिदान को यह सम्मान और आर्थिक सहायता मिली, तो आरक्षक महेश पाठक, जिन्होंने ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवाई, को भी समान ‘शहीद’ का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा? यह दोहरा मापदंड प्रशासनिक प्राथमिकता और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।


जनप्रतिनिधियों से सीधी पुकारः चुप्पी क्यों


शहडोल के जनप्रतिनिधि आखिर कब इस अत्यंत संवेदनशील मामले का संज्ञान लेंगे? क्या किसी भी विधायक या सांसद द्वारा सरकार को पत्राचार किया जाएगा? यह प्रश्न अत्यंत गंभीर है कि कर्तव्य की वेदी में या आमजन को बचाते हुए कर्तव्य परायणता में शहीद हुए महेश पाठक को महेंद्र बागरी के समान आर्थिक सहायता और शहीद का दर्जा सहित अन्य लाभ क्यों नहीं प्राप्त होगा? पूरे जिले में शोक और आक्रोश के बावजूद, अब तक किसी भी जिम्मेदार आधिकारिक व्यक्ति या राजनीतिक नेता का बयान क्यों नहीं आया है? यह चुप्पी यह दर्शाती है कि सरकारी तंत्र आम पुलिसकर्मी के बलिदान को कितनी कम प्राथमिकता देता है और इस मामले को प्रशासनिक फाइलों में दबाने की कोशिश हो रही है।


बलिदान पर राजनीतिक संवेदनशीलता की मांग


महेश पाठक का निधन उनके परिवार के लिए अधिकारों और सम्मान का सवाल है। शहीद का दर्जा मिलने से परिवार को मिलने वाली अनुकंपा, पेंशन और आर्थिक सहायता का पैकेज काफी बढ़ जाता है। यह राजनीतिक संवेदनहीनता है कि जब आम जनता और स्थानीय नेता सर्वाेच्च सम्मान देने की मांग कर रहे हैं, तब प्रदेश स्तर के जिम्मेदार राजनेता इस बलिदान पर एक शब्द भी नहीं कह रहे हैं। उनकी यह चुप्पी यह दर्शाती है कि कहीं ना कहीं यह मामला प्रशासनिक फाइलों में दबकर रह जाएगा, जबकि उनके पूरे कार्यकाल की निष्ठा सर्वाेच्च सम्मान की हकदार है। शहडोल शोकमग्न है और सवाल कर रहा हैः क्या शहीद की बेदी पर इस कर्मठ आरक्षक का नाम लिखा जाएगा?


इनका कहना है 


हमारा कर्मचारी पुलिस ड्यूटी के दौरान शहीद हुआ है उसकी मृत्यु हुई है, इन परिस्थितियों को देखते हुए हम शाहिद का दर्जा प्राप्त होगा यह अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन हम अपना प्रतिवेदन भेजेंगे।

रामजी श्रीवास्तव 

पुलिस अधीक्षक, शहडोल


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